Rajasthani Painting राजस्थानी चित्रकला का इतिहास अतीव प्राचीन है। कोटा के पास आलनियां में सीतामाता के मांडणे, भीलवाड़ा के ओझियाना में शैलचित्र तथा गरदड़ा (बूंदी) में बर्ड राइडर पेन्टिंग आदि इसके अदाहरण हैं। राजस्थान में महामारू शैली का प्रचलन गुर्जर प्रतिहार शासकों के शासन काल में हुआ।
मेवाड़ रियासत राजस्थानी चित्रकला की जन्म भूमि कहलाती है। राजस्थान में चित्रकला की शुरूआत मेवाड़ के राणा कुम्भा के शासनकाल से हुई। अतः राणा कुम्भा को राजस्थान के चित्रकला का जनक तथा मेवाड़ रियासत को राजस्थानी चित्रकला की जन्म भूमि कहा जाता है।
10वीं से 15वीं शताब्दी तक राजस्थान में प्रचलित अजन्ता चित्रकला शैली थी। राजस्थानी चित्रकला पर सबसे पहले अजंता शैली का फिर फारस शैली का तथा बाद में मुगल शैली (सर्वाधिक प्रभाव) का प्रभाव पड़ा। राजस्थान शैली की चित्रकला सोलहवीं शताब्दी में विकसित हुई। कार्ले खण्डावला ने 17वीं 18वीं शताब्दी की राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल कहा है।
Table of Contents
Rajasthani Painting राजस्थान की चित्रकला के सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रंथ
राजस्थान की चित्रकला के सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रंथ ‘ओघ निर्युक्ति वृत्ति‘ व ‘दस वैकालिक सूत्र चूर्णि‘ है, जो जैसलमेर दुर्ग के अंदर जिनभद्र सूरी संग्रहालय में रखे हुए है। इन दोनों ग्रंथो को भारतीय कला का द्वीप स्तम्भ कहते हैं, तो राजस्थान का प्रथम चित्रित ग्रन्थ ‘‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि‘‘ हैं जिसकी रचना 1261 ई. में मेवाड़ के तेजसिंह के शासनकाल में हुई जो मेवाड़ चित्रकला शैली से संबधित है।(Rajasthani Painting)
नोट- राज्य में तिब्बती इतिहासकार ‘तारानाथ‘ ने मरूप्रदेश (मारवाड़) में 7वीं शताब्दी में शृंगधर‘ नामक चित्रकार का उल्लेख किया है। जिसे राजस्थानी चित्रकला का ‘प्रथम चित्रकार‘ माना जाता है। शंृगधर यक्ष शैली का प्रमुख चित्रकार था तथा यह मरूप्रदेश के प्रतिहार वंशीय शीलुक का दरबारी चित्रकार था। तो कर्नाटक (केरल) के प्रसिद्ध चित्रकार रवि वर्मा को भारतीय चित्रकला का पितामह कहा जाता है।
राजस्थान की चित्रकला पर आनन्द कुमार स्वामी ने ‘‘राजपूत पेंटिग‘‘ नामक पुस्तक में प्रथम बार प्रकाश डाला व 1916 में राजस्थानी चित्रकला का सर्वप्रथम वैज्ञानिक विभाजन किया तथा पहाड़ी चित्रकला को भी राजस्थानी चित्रकला में शामिल किया गया।
नोट- इस पहाड़ी चित्रकला को पहली बार राजस्थानी चित्रकला रामकृष्ण दास ने कहा।
Also Read: What Is Artificial Intelligence And How Does It Work?
आधुनिक चित्रकला व भित्ति चित्र Rajasthani Painting
राजस्थान की आधुनिक चित्रकला की शुरूआत करने का श्रेय कुन्दनलाल मिस्त्री को जाता है, ये आधुनिक चित्रकला के नमूने हम जयपुर के म्यूजियम में देख सकते हैं।
राजस्थान में भित्ति चित्रों (दीवार पर किया गया सौन्दर्य अलंकरण भित्ति चित्रण कहलाता है) को चिरकाल (कई वर्षो) तक जीवित रहने के लिए एक आलेखन पद्धति है जिसे ‘अरायश या आला गीला‘ पद्धति कहते हैं।(Rajasthani Painting)
नोट- राजस्थान में आला गीला पद्धति की शुरूआत जयपुर (आमेर रियासत) से हुई थी।
इसमें दीवार पर पलास्तर करने के पश्चात् गीले पलास्तर पर ही चित्र बनाये जाते है। उसे शेखावटी क्षेत्र में पणा कहते हैं। यह मूलतः इटली की पद्धति है, जिसका भारत में आगमन जहाँगीर के काल मेें हुआ था। भित्ति चित्र तैयार करने के लिए राहोली का चूना (पणा) सर्वोत्तम माना जाता है।
मण्डावा भित्ति चित्र के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान का शेखावटी क्षेत्र (शेखावटी के भित्ति चित्रण में लोक जीवन की झांकी सर्वाधिक देखने को मिलती है।) व कोटा बूंदी क्षेत्र भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, तो आॅपन आर्ट गैलेरी के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध है।
नोट- चित्रकला हेतु कार्यरत ‘‘आयमा तथा कलावृत संस्थान‘‘ जयपुर में स्थित है। कैनवास प्रकृति के चित्रों के लिए प्रसिद्ध चित्रकार श्रीमती प्रतिभा पाण्डे जिनका जन्म धौलपुर में हुआ। जिनका सर्वोत्तम चित्र ‘फाल आॅफ बर्लिन‘ है।
-
जनपद युग और राजस्थान
-
राजस्थान का इतिहास – प्रागैतिहासिक, आद्य ऐतिहासिक एवं ऐतिहासिक काल
-
राजस्थान में प्रमुख जनजाति आन्दोलन
Rajasthani Painting राजस्थानी चित्रकला के भाग
राजस्थानी चित्रकला को चार स्कूलों में बांटा गया है, जिनकी कई उपशाखाएँ भी थी, जैसे-
1. मेवाड़ स्कूल- यह राजस्थान की सबसे प्राचीन स्कूल मानी जाती थी, जिसके अंतर्गत उदयपुर, नाथद्वारा, चावंड, देवगढ़ शैलियाँ आती है।
2. हाड़ौती स्कूल- इस स्कूल के अंतर्गत कोटा, बूंदी व झालावाड़ शैलियाँ आती है।
3. ढूँढाड स्कूल- इस स्कूल के अंतर्गत जयपुर, अलवर, शेखावटी, उणियारा (टोंक), करौली शैलियाँ आती है।
4. मारवाड़ स्कूल- चित्रकला का सबसे प्रसिद्ध स्कूल, जिसके अंतर्गत जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, किशनगढ़, नागौर शैलियाँ आती है।