राजस्थान और जनपद युग

300 ईसा पूर्व से 300 ई. तक

आर्य युगीन संस्कृति के बाद राजस्थान में जनपदों का उदय देखने को मिलता है। उस समय की अनेक मुद्राओं, आभूषणों, अभिलेखों और खण्डहरों से हमारे इतिहास की घटनाएँ अधिक प्रमाणों पर आधारित की जा सकती है।
भारत पर 326 ई. पूर्व में यूनानी राजा सिकन्दर ने आक्रमण किया। उसी आक्रमण के कारण पंजाब की मालव, शिवी, अर्जुनायन आदि जातियाँ जो अपने साहस और शौर्य के लिए प्रसिद्ध थी। ये सभी अन्य जातियों के साथ राजस्थान में आई और यहीं पर निवास करने लगी। इस प्रकार राजस्थान के पूवी भाग में जनपद युगीन शासन व्यवस्था का सूत्रपात हुआ। इसमें से प्रमुख जनपद इस प्रकार हैं-

मालव जनपद

मालव जनपद का मूल स्थान रावी-चिनाब नदी के संगम का क्षेत्र था। पाणिनि ने इनका वर्णन एक आयुध जीवी के रूप में किया था।

नोट- राजस्थान में मालवों ने प्रारम्भिक केन्द्र जयपुर के पास मगरछल नामक स्थान को बनाया। तो मालवों की शक्ति का मुख्य केन्द्र जयपुर के निकट नगर या कर्कोट नगर था।

समयान्तरों में मालव राज्य अजमेर, टोंक तथा मेवाड़ क्षेत्र तक फैल गया। मालव जनपद समुद्रगुप्त के समय तक स्वतंत्र रहा। 225 ई. के नांदसा यूप स्तम्भ शिलालेख (भीलवाड़ा) के अनुसार मालव जनपद के राजा श्री सोम ने क्षत्रपों को परास्त कर एक षष्ठीरात्र यज्ञ का आयोजन करवाया और ब्राह्मणों को गौदान कर सन्तुष्ट किया। मालवों ने पुष्कर क्षेत्र के भ्रदों पर आक्रमण किया तो शक क्षत्रप ‘नहपान‘ ने भद्रों की सहायता के लिए अपने दामाद ऋषभदत्त को भेजा, जिसने मालवों को पराजित किया।

शकों व कुषाणों के एक लम्बें संघर्ष के बाद मालव जनपद शकों व कुषाणों के अधीन हो गया। शकों व कुषाणों के एक लम्बें संघर्ष के बाद मालव जनपद ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली। जिसके बारे में हमें जानकारी ‘प्रयाग प्रशस्ति‘ में मिलती है।

नोट- राजस्थान में मालव जनपद के सर्वाधिक सिक्के प्राप्त हुए हैं परन्तु इनके मूल स्थान पंजाब से इनका एक भी सिक्का नहीं मिला। भारत के प्राचीन नगरों का पतन नामक प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक रामचरण शर्मा है।

शिवी जनपद

ऋग्वेद में वर्णन आता है कि शिवी जाति की राजधानी शिवपुर थी तथा राजा सुदास ने उसे अन्य जातियों के साथ दसराज्ञ के युद्ध में पराजित किया था। प्राचीन शिवपुर की पहचान वर्तमान पाकिस्तान के झंग प्रदेश मे स्थित शोरकोट नामक स्थान से की जाती है।

चैथी शताब्दी ईसा पूर्व सिकन्दर के आक्रमण से भारत के अनेक राज्यों के अस्तित्व और सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया था तो दक्षिणी पंजाब की शिवी जनजाति अन्य जातियों के साथ राजस्थान में आई और वर्तमान के उदयमुर (मेवाड़) क्षेत्र में निवास करने लगी। इन्होंने अपनी राजधानी मध्यमिका को बनाया जिसे वर्तमान में नगरी के नाम से जानते है। इसी देश को हम शिवी देश भी कहते हैं। ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में जन्में पùचरी ने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर लिखे अपने भाष्य में मध्यमिका पर यवन आक्रमण का भी उल्लेख किया है।

योद्धेय जनपद

राजस्थान के उत्तरी भाग (श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़) में योद्धेय भी एक बलशाली जनपद था। रूद्रदामन के लेख से स्पष्ट होता है, कि योद्धेय उत्तरी राजस्थान में स्थित कुषाण शक्ति को नष्ट करने में सफल हुये थे। इसी योद्धेय जनपद में कुमार नामक एक बलशाली नेता हुआ था।

शूरसेन जनपद

शूरसेन महाजनपद का अस्तित्व पर मुख्यतः उत्तरप्रदेश में था। जिसमें राजस्थान के पूर्वी अलवर, भरतपुर, करौली तथा धौलपुर के क्षेत्र आते थे। शूरसेन जन पद की राजधानी मथूरा थी। वासुदेव पुत्र श्रीकृष्ण का संबंध इसी जनपद से था।

कुरू जनपद

कुरू जनमद में राजस्थान का उत्तरी अलवर क्षेत्र आता था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी, जिसमें वर्तमान में दिल्ली का क्षेत्र आता है।

मत्स्य जनपद

मत्स्य जनपद में वर्तमान अलवर, जयपुर, भरतपुर तथा कुछ धौलपुर जिले का हिस्सा आता था। इसकी राजधानी विराटनगर वर्तमान बैराठ थी।

इनके अलावा राजस्थान में राजन्य जनपद जिसमें वर्तमान का भरतपुर जिला आता था। शाल्व जन पद जिसमें यहाँ का अलवर जिला आता था। इनके अलावा भरतपुर, अलवर क्षेत्र के अर्जुनायनों ने अपना जन पद स्थापित किया जिनकी मुद्राओं पर ‘अर्जुनायानाम जय‘ अंकित मिलता है। इस जनपद काल में बौद्ध धर्म का बोलबाला था, परन्तु योद्धेय और मालवों ने यहाँ आकर ब्राह्मण धर्म प्रतिस्थापित किया।

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