राजस्थान में भील, मीणा, मेर, गरासिया आदि जनजातियाँ प्राचीन काल से ही निवास करती आई हैं। राजस्थान के डूंगरपुर व बांसवाड़ा क्षेत्र में भील जनजाति का बाहुल्य हैं। मेवाड़ राज्य की रक्षा में यहाँ के भीलों ने सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए मेवाड़ राज्य के राजचिह्न में राजपूत के साथ एक धनुष धारण कीए हुए भील का चित्र भी अंकित है। अंग्रेजों द्वारा लागू की गई आर्थिक, सामाजिक व प्रशासनिक नीतियों के विरोध के फलस्वरूप् सर्वप्रथम राजस्थानी जनजातियों व आदिवासियों ने जनजाति आन्दोलन किया।
भगत आन्दोलन
भीलों के भगत आन्दोलन के प्रणेता गोविन्द गिरी थे, जिनका जन्म बाँसिया गाँव (डूँगरपुर) में हुआ। इन्होंने भीलों में जागृति व सामाजिक सुधार लाने के लिए भरसक प्रयास किया, इसे भगत आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इस प्रसिद्ध भगत आन्दोलन का नेतृत्व गोविन्द गिरी अलावा गोबपालिया और पूंजा धीरजी ने किया था। 1883 ई. में गोविन्द गिरी ने ‘सम्प सभा‘ का गठन किया। गोविन्द गिरी ने सम्प सभा का पहला अधिवेशन सन् 1903 ई. में मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) पर किया तथा प्रतिवर्ष यहाँ अधिवेशन होने लगा। 9 नवम्बर 1913 ई, को अंग्रेजी सेना ने मानगढ पहाड़ी को घेर कर उपस्थित भीलों पर गोली चला दी जिससे 1500 स्त्री पुरूष शहीद हो गए। इस प्रकार इस आन्दोलन को कुचल दिया गया। बाँसवाड़ा का मानगढ़ धाम भील समुदाय से संबंधित है।
नोटः लीमडी नामक स्थान के पास कंबाई स्थान पर गोविन्द गिरी का अन्तिम समय बीता। तो वहीं भगत पंथ में दीक्षित व्यक्ति को गले में रूद्राक्ष की माला व धूणी जलानी पड़ती थी। मेवाड़, वागड़ और आस पास के क्षेत्रों में सामाजिक सुधार के लिए ‘लसाड़िया आंदोलन‘ का सूत्रपात गोविन्द गिरी ने किया।
एकी या भोमट जनजाति आन्दोलन
मोतिलाल तेजावत ने उदयपुर और सिरोही के आदिवासियों में जागृति लाने का काम किया, उन्होंने अत्यधिक करों, बेगार आदि के विरूद्ध 1921 में मातृकुण्डिया (चितौड़गढ़) से एकी आन्दोलन चलाया। यह आंदोलन भीलों के भोमट क्षेत्र में चलाया गया इसलिए इसे भोमट आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है। इस आन्दोलन के प्रणेता मोतीलाल तेजावत थे। भील जनजाति इन्हें अपना मसीहा मानती थी अतः इन्हें ‘बावजी‘ के नाम से पुकारती थी। तेजावत के भीलों की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक 21 सूत्री जाँच का एक प्रारूप् तैयार करवाया जिसे ‘मेवाड़ पुकार‘ की संज्ञा दी गई।
तेजावत जी के नेतृत्व में विजयनगर राज्य के नीमड़ा गाँव में एक विशाल आदिवासी सम्मेलन हुआ। 9 मार्च 1922 ई. को पुलिस ने उन्हें घेरकर उन पर गोलियाँ चलाई, जिसमें लगभग 1200 भील शहीद हो गए। तेजावतजी के भी पैर में गोली लगी। जिन्हें भीलों ने सुरक्षित बाहर निकाला। नीमडा हत्याकाण्ड को एक दूसरे जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की संज्ञा दी गई। अंग्रेजों ने व राज्य सेना ने दमन कर आन्दोलन को समाप्त कर दिया। 3 जून 1922 ई. को मोतिलाल तेजावत ने आत्मसमर्पण कर दिया। तेजावत जी को ‘मेवाड़ का गांधी‘ भी कहा जाता है।
नोट- मोतीलाल तेजावत 1921-22 में मेवाड़ के भीलों के आदिवासी किसान आन्दोलन के महत्वपुर्ण व्यक्तियों में से एक है।
मीणा जनजाति आन्दोलन
मीणा जनजाति दो भाग में बंटी हुई थी, एक तो जमींदार वर्ग व दूसरा चौकीदार वर्ग। इनमें से चैकीदार वर्ग को चोरी डकेती के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। भारत सरकार ने 1924 में ‘क्र्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट‘ लागू कर दिया गया, जिसके तहत हर मीणा परिवार के 12 वर्ष से बड़े स्त्री-पुरूष को थाने में हाजरी व नाम प्रतिदिन दर्ज करवाना अनिवार्य था। इस कार्यवाही के विराध में ‘मीणा जाति सुधार कमेटी‘ की स्थापना की लेकिन इस संस्था का लोप हो गया।
1930 ई. में जयपुर राज्य ने रियासत में जयराम पेशा कानून लागू किया। इसके विरोध में जैन मुनि मगर सागर जी के नेतृत्व में मीणओं का वृहत सम्मेलन ‘नीमकाथाना‘ (सीकर) में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन मेें जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति की स्थापना हुई। 31 दिसम्बर 1945 ई. में जयराम पेशा कानून रद्द करने की स्वीकृति मिली व यह आन्दोलन समाप्त हुआ।
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