Table of Contents
वायु फोटोचित्र (एरियल फोटोग्राफी)
गुब्बारे, वायुयान तथा अन्य किसी आकाशीय प्लेटफार्म के माध्यम से जो चित्र प्राप्त किया जाता है उसे वायु फोटोचित्र (एरियल फोटोग्राफी) कहा जाता है।
वायुमण्डल आधारित प्लेटफार्म;
वायुमण्डल में स्थिर अथवा गतिमान आधार के लिए हेलिकॉप्टर अथवा वायुयान का प्रयोग किया जाता है। कैमरा तथा वायुयान के प्रयोग से वायु फोटोचित्र (एरियल फोटोग्राफी) का क्षेत्र विकसित हुआ। वायुयान के प्लेटफार्म के रूप में प्रयोग करने से सुदूरसंवेदन के क्षेत्र में वायु फोटोचित्र का प्रयोग तेजी से बढ़ा है, क्योंकि इसमें बडे़ स्वचालित कैमरे फिट किए जा सकते है और इसको नियन्त्रित करना अधिक सुगम होता है।
वायुयान के द्वारा ऊंची और लम्बी उड़ान क्षमता भी उसको आदर्ष प्लेटफार्म बनाती है, मिग व जगुआर जैसे विमान इसके लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हुए है, क्योंकि ये 30,000 से 50,000 मी॰ की ऊंचाई तक आसानी से उड़ सकते हैं।
वायु फोटोचित्रों के गुण
- वायुफोटोचित्र किसी क्षेत्र की भौतिक व सांस्कृतिक दृश्यभूमियों के सम्बध में अपेक्षाकृत अधिक अभिनव सूचनाएं उपलब्ध कराता है। किसी क्षेत्र का नवीन से नवीन स्थलाकृतिक मानचित्र भी प्रायः उस क्षेत्र के वायु फोटोचित्र की तुलना में पुराना होता है। अतः नवीन सूचना प्राप्त करने के लिए वायु फोटोचित्रों का प्रयोग किया जाता है।
- प्रचलित मापनियों पर बनाये गये किसी भी स्थलाकृतिक मानचित्र में धरातल के सभी छोटे-बड़े विवरणों को एक साथ प्रदर्षित नहीं किया जा सकता है, इसके विपरीत वायु फोटोचित्र में धरातल के छोटे से छोटे विवरण भी अंकित हो जाते हैं। अधिक अभिनव सूचना (नविन सूचना) प्राप्त करने के लिए वायु फोटोचित्रों का प्रयोग किया जाता है।
- स्थलाकृत मानचित्रों में वृक्षों, भवनों, खम्भों तथा चिमनियों, आदि की उंचाईयां अंकित नहीं होती है, जबकि वायु फोटोचित्रों में किसी विवरण उंचाई (उस विवरण की परछाई से) ज्ञात की जा सकती है।
- सर्वक्षण उपकरणों से दुर्गम क्षेत्रों का मानचित्रण करने में बहुत कठिनाई होती है, परन्तु हवाई फोटोग्राफी से यह कार्य बहुत सरल हो जात है। दुर्गम क्षेत्रों के सन्दर्भ में सूचना प्राप्त करने के लिए वायु फोटोचित्रों का प्रयोग किया जाता है।
- राजस्थानी चित्रकला – Rajasthani Painting
- राजस्थानी चित्रकला की मारवाड़ शैली / Marwar School of Paintings
- राजस्थान का इतिहास – प्रागैतिहासिक, आद्य ऐतिहासिक एवं ऐतिहासिक काल
- जनपद युग और राजस्थान
वायुफाटोग्राफी के दोष
- मापनी की असंगतता:- मानचित्र में मापनी सर्वत्र एकसमान होती है, अतः मानचित्र की निर्धारित सीमाओं के भीतर प्रत्येक भाग में मापनी के द्वारा किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की दूरी को सही-सही मापा जा सकता है, जबकि वायु फोटोचित्रों में धरातल की ऊंचाई के अन्तरों तथा कैमरे व वायुयान के झुकाव से उत्पन्न स्थिति सम्बन्धी त्रुटियों के फलस्वरूप मापनी में असंगतता आ जाती है, अर्थात् वायु फोटोचित्रों के एक भाग की मापनी दूसरे भाग की मापनी से भिन्न हो जाती है।
- व्याख्या की कठिनाई:- वायु फोटोचित्र में धरातल के विवरणों को एक असमान्य दृश्य बिन्दु से देखा जाता है, अतः उसकी सही-सही व्याख्या करने के लिये अभ्यास व अनुभव की आवश्यकता होती है। वायु फोटोचित्रों के गुण दोषों का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचाते हैं कि मानचित्र धरातल का स्पष्ट एवं करीब-करीब शुद्ध किन्तु पुराना चित्र होता है जबकि वायु फोटोचित्र धरातल का विवरणों से परिपूर्ण ऐसा अभिनव चित्र प्रस्तुत करता है, जिसे पढ़ने में विशेष सावधानी, अभ्यास व अनुभव की आवश्यकता होती है। वायु फोटोचित्र में कुछ विकृतियां निहित होती है अतः इन दोनों विधियों को एक साथ प्रयोग करना लाभप्रद होता है।
वायु फोटोचित्र के प्रकार
वायु फोटोचित्रों के प्रमुख दो प्रकार है:- (1) तिर्यक फोटोचित्र एवम (2) उर्ध्वाधर फोटोचित्र
(1) तिर्यक फोटोचित्र- तिर्यक फोटोचित्र खीचंने के लिये वायुयान में रखें गयें कैमरे को धरातल की ओर नत दिशा में स्थिर करके लक्ष्य करते है, जिससे फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणें के पार्श्व दृश्य दिखलाई देते है, इस प्रकार ये फोटोचित्र किसी उंची मीनार या पर्वत चोटी से खींचे गये फोटोचित्रों के समान होते हैं।
(2) उर्ध्वाधर फोटोचित्र- क्षैतिज उड़ान भरते हुए वायुयान में कैमरे को लम्बवत् नीचे की ओर लिए गए चित्र उर्ध्वाधर फोटोचित्र कहलाते हैं।
फोटोचित्र लेते समय धरातल की ओर कैमरे का कितना झुकाव होता है इसके आधार पर उर्ध्वाधर फोटोचित्र के निम्नलिखित दो भेद होते हैं; (1) ऊच्चकोंण तिर्यकफोटोचित्र एवम (2) अल्पकोण तिर्यक फोटोचित्र
उच्चकोण तिर्यक – उच्चकोण तिर्यक फोटोचित्र की मुख्य पहचान यह है कि इनमें विवरण पश्व दृश्यों के साथ-साथ क्षैतिज भी दिखायी देता है। इसके विपरित जिन फोटोचित्रों में क्षैतिज विवरण दिखलाई नहीं देती हैं उन्हें अल्पकोण तिर्यक फोटोचित्र कहा जाता है।
# ट्रिमेट्रोगन फोटोचित्र – ट्रिमेट्रोगन पद्धति में वस्तुतः तीन कैमरे एक साथ कार्य करते हैं। एक कैमरा उर्ध्वाधर फोटाचित्र खींचता है तथा इधर-इधर के कैमरे क्षितिज तक के तिर्यक वायु फोटोचित्र खींचते हैं। इस प्रकार ट्रिमेट्रोगन पद्धति में दायीं क्षितिज से बायीं क्षितिज तक का समस्त क्षेत्र अंकित हो जाता है।
# अभिसारी फोटोचित्र – अभिसारी पद्धति से फोटोचित्र खींचने के लिये वायुयान में दो कैमरे प्रयोग किये जाते है जो एक ही क्षेत्र के दो अलग-अलग तिर्यक फोटोचित्र खींचते हैं। फोटोग्राफी में किसी क्षेत्र के एक ही समय में अलग-अलग कैमरों के द्वारा लिये गये दो फोटाचित्र प्राप्त हो जाते है।
फोटोमोजैक – प्रायः किसी एक वायु फोटोचित्र में धरातल के केवल कुछ ही भाग का चित्र अंकित होता है, अतः किसी बड़े क्षेत्र, जैसे समस्त भाग को एक ही चित्र में देखने के लिए उस क्षेत्र के समस्त वायुफोटोचित्रों को परस्पर सही-सही मिलाकर चिपका देते हैं यह समूह फोटोचित्र, वायु फोटोचित्र का फोटोमोजैक कहलाता है।
- Top 11 Business Ideas for Entrepreneurs in 2022
- How to buy a Domain name for Website
- What is 403 error on your website and why does this happen?
हवाई फोटोग्राफी की विधियां- हवाई फोटोग्राफी करने की दो विधियां हैं;
# पिन-बिन्दु फाटोग्राफी – वायुयान से धरातल की किसी तिर्यक फाटोचित्र खींचना बिन्दु फोटोग्राफी कहलाती हैं यह वस्तु कोई भवन, कारखाना, पुल, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, बंकर या ऐसा ही कोई अन्य स्थान हो सकता है, जिसके एक या दो फोटोचित्र खंचें जाते है।
# ब्लॉक फोटोग्राफी – बड़े बड़े क्षेत्रों के हवाई संर्वेक्षण करने के लिए पिन-बिन्दु फोटोग्राफी के बजाए ब्लॉक फोटोग्राफी विधि प्रयोग में लायी जाती है, इस विधि में दिए हुए क्षेत्र के ऊपर सर्पिल प्रतिरूप में वायुयान उड़ातें हुए द्वारा प्रत्येक पट्टी के अतिव्यापि फोटोचित्र खिंचें जाते हैं।
फोटोग्राफी के विधियों का प्रयोग;
फोटोग्राफी करने से पूर्व उड़ान के समय और मौसम का पूर्व विचार कर लेना चाहिए।
# प्रकाश – फोटोग्राफी में प्रकाश का विशेष ध्यान रखा जाता है, अतः वायु फोटोचित्र खिंचने के लिए 1-2 बजे तक का समय सर्वोत्तम माना जाता है। प्रातःकाल या सायंकाल में खींचे गए वायु फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणों की लम्बी-लम्बी छाया अंकित हो जाती है।
# मौसम – यद्यपि वायुफोटोग्राफी धरातल की जानकारी का त्वरित माध्यम है और जब आवश्यकता होती फोटोग्राफी तभी आवश्यक होती है, लेकिन सामान्य रूप से सर्वेक्षण के उद्देश्य के अनुसार मौसम का चुनाव करते हैं। उदाहरणार्थ – पर्णपाती वनों के फोटोचित्र खिंचने के लिए बसन्तकाल अच्छा रहता है, इसी प्रकार फसल क्षेत्रों फोटोचित्रों के लिए फसल का मौसम चुना जाता है।
[su_button url=”https://jangidweb.in/what-is-stress-how-to-relieve-stress/” background=”#2d36ef” size=”8″ icon_color=”#ffffff”]DOWNLOAD LINK [/su_button]