राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले – Rajasthan ke Durg (Part-2)

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राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले – Rajasthan ke Durg (Part-2)

अकबर का किला

अजमेर में स्थित इस किले का निर्माण 4570 में अकबर ने करवाया था। इस किले को दौलतखाना या मैग्जीन के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू-मुस्लिम पद्धति से निर्मित इस किले का निर्माण अकबर ने ख्वाजा मुइनुद्दीन हसन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु करवाया था | 4576 में महाराजा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप इसी किले में दिया गया था। जहाँगीर मेवाड़ को अधीनता में लाने के लिए तीन वर्ष तक इसी किले में रूका था। इस दौरान ब्रिटिश सम्राट जेम्स प्रथम के राजदूत सर टॉमस रो ने इसी किले में 40 जनवरी, 4646 को जहाँगीर से मुलाकात की थी।

आमेर दुर्ग – Rajasthan ke Durg

यह दुर्ग अपने स्थापत्य की दृष्टि से अन्य दुर्गों से सर्वथा भिन्‍न है। प्राय: सभी दुर्गों में, जहाँ राजप्रासाद प्राचीर के भीतर समतल भू-भाग पर बने पाये जाते हैं, वहीं आमेर दुर्ग में राजमहल ऊँचाई पर पर्वतीय ढलान पर इस तरह बने हैं कि इन्हें ही दुर्ग का स्वरूप दिया लगता हैं। इस किले की सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत थी, फिर भी कछवाहा शासकों के शौर्य और मुगल शासको से राजनीतिक मित्रता के कारण यह दुर्ग बाहरी आक्रमणों से सदैव बचा रहा। आमेर दुर्ग के नीचे मावठा तालाब और दौलाराम का बाग खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। इस किले में बने शिलादेवी, जगतशिरोमणि और अम्बिकेश्वर महादेव के मन्दिरों का ऐतिहासिक काल से ही महत्त्व रहा है।

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कुंभलगढ़ दुर्ग

वर्तमान राजसमन्द जिले में अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थित कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण राणा कुंमा ने करवाया था। इस दुर्ग का शिल्पी मंडन मिश्र था। कुंभलगढ़ संभवतः भारत का ऐसा किला है, जिसकी प्राचीर 36 किमी तक फैली है। दुर्ग रचना की दृष्टि से यह चित्तौड़ दुर्ग से ही नहीं बल्कि भारत के सभी दुर्गों में विलक्षण और अनुपम है। कुंभलगढ़ के भीतर ऊँचे भाग पर राणा कुंभा ने अपने निवास हेतु ‘कटारगढ़’ नामक अन्तःदुर्ग का निर्माण करवाया था। इसी कटारगढ़ में राणा उदयसिंह का राज्याभिषेक और महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था | कुंभलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। किले के भीतर कुंभश्याम मंदिर, कुंभा महल, झाली रानी का महल आदि प्रसिद्ध इमारते हैं।

गागरोन का किला

झालावाड़ से चार किमी दूरी पर अरावली पर्वतमाला की एक सुदृढ़ चट्टान पर कालीसिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता है। इस किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था। दुर्गम पथ, चौतरफा विशाल खाई तथा मजबूत दीवारों के कारण यह दुर्ग अपने आप में अनूठा और अद्भुत है। यह दुर्ग शौर्य ही नहीं भक्ति और त्याग की गाथाओं का साक्षी है।

संत रामानन्द के शिष्य संत पीपा इसी गागरोन के शासक रहे हैं, जिन्होंने राजसी वैभव त्यागकर राज्य अपने अनुज अचलदास खींची को सौंप दिया था। गागरोन में मुस्लिम संत पीर मिट॒ठे साहब की दरगाह भी है, जिनका उर्स आज भी प्रतिवर्ष यहाँ लगता है। यह किला अचलदास खींची की वीरता के लिए प्रसिद्ध रहा है जो 4423 में मांडू के सुल्तान हुशंगशाह से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धोपरान्त रानियों ने अपनी रक्षार्थ जौहर किया।

चित्तौड़ का किला

राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा चित्तौड़ का किला है। यह दुर्ग वीरता, त्याग, बलिदान, स्वतन्त्रता और स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में देश भर में विख्यात है। सात प्रवेश द्वारों से निर्मित इस किले का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया था। यह किला गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम पर स्थित है। दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर अवस्थित होने के कारण मध्यकाल में इस किले का सामरिक महत्त्व था। 1303 में इस किले को अलाउद्द न खिलजी ने तथा 1534 में गुजरात के बहादुरशाह ने अपने अधिकार में ले लिया था।

1567-1568 में अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करके यहाँ भयंकर नरसंहार करवाया था। चित्तौड़गढ़ में इतिहास प्रसिद्ध साकों में 1303 का रानी पद््‌मिनी का जौहर और 1534 का रानी कर्णावती का जौहर मुख्य है। चित्तौड़गढ़ के भीतर राणा काुंभा द्वारा निर्मित नौ मंजिला प्रसिद्ध कीर्तिस्तम्भ अपने शिल्प और स्थापत्य की दृष्टि से अनूठा है। इस किले के भीतर निर्मित महलों और मन्दिरों में रानी पदिमनी का महल, नवलखा भण्डार, जैन कीर्ति स्तम्भ (सात मंजिला), कुंभश्याम मंदिर, समिद्धेश्वर मंदिर, मीरा मंदिर, कालिका माता मंदिर, श्रृंगार चँवरी आदि दर्शनीय हैं।

जयगढ़ – Rajasthan ke Durg

मध्ययुगीन भारत की प्रमुख सैनिक इमारतों में से एक जयगढ़ दुर्ग की खास बात यह कि इसमें तोपें ढालने का विशाल कारखाना था, जो शायद ही किसी अन्य भारतीय दुर्ग में रहा है। इस किले में रखी ‘जयबाण’ तोप को एशिया की सबसे बड़ी तोप माना जाता है। जयगढ़ अपने विशाल पानी के टांकों के लिये भी जाना जाता है। जल संग्रहण की खास तकनीक के अन्तर्गत जयगढ़ किले के चारों ओर पहाड़ियों पर बनी पक्की नालियों से बरसात का पानी इन टांकों में एकत्र होता रहा है।

इस किले का निर्माण एवं विस्तार में विभिन्‍न कछवाहा शासकों का योगदान रहा है, परन्तु इसे वर्तमान स्वरूप सवाई जयसिंह ने प्रदान किया। जयगढ़ को रहस्यमय दुर्ग भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कई गुप्त सुरंगे हैं। इस किले में राजनीतिक बन्दी रखे जाते थे। ऐसा माना जाता है कि मानसिंह ने यहाँ सुरक्षा की दृष्टि से अपना खजाना छिपाया था। वर्तमान में जयगढ़ किले में मध्यकालीन श्त्रास्त्रों का विशाल संग्रहालय है। यहाँ के महल दर्शनीय हैं।

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जालौर का किला

सोनगिरि पहाड़ी पर स्थित यह किला सूकड़ी नदी के किनारे बना हुआ है। शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालिपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता है। इस किले का निर्माण प्रतिहारों द्वारा आठवीं सदी में करवाया गया था। इस किले पर परमार, चौहान, सोलंकियों, तुर्कों और राठौड़ो का समय-समय पर आधिपत्य रहा। किले के भीतर बनी तोपखाना मस्जिद, जो पूर्व में परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी, बहुत आकर्षक है। यहाँ का प्रसिद्ध शासक कान्हड़दे चौहान (1305-1344) था, जो अलाउद्दीन खिलजी से लड़ता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ।

जूनागढ़ का किला

बीकानेर स्थित जूनागढ़ किले का निर्माण राठौड़ शासक रायसिंह ने करवाया था। यहाँ पूर्व में स्थित पुराने किले के स्थान पर इस किले का निर्माण करवाने के कारण इसे जूनागढ़ के नाम से जाना जाता है। जूनागढ़ के आन्तरिक प्रवेश द्वार सूरजपोल के दोनों तरफ जयमल मेड़तियाँ और फत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो उनके पराक्रम और बलिदान का स्मरण कराती हैं। सूरजपोल पर ही रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण है। शिल्प सौन्दर्य की अनूठी मिशाल लिए जूनागढ़ किले में बने महल और उनकी बनावट मुगल स्थापत्य कला की बरबस ही याद दिलाते हैं।

किले में कुल 3 बुर्जे हैं, जिनके ऊपर कभी तोपें रखी जाती थीं। सम्भवतः राजस्थान का यह एक मात्र ऐसा किला है, जिसकी दीवारें, महल इत्यादि में शिल्प सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। गंगा निवास जूनागढ़ का ऐसा हॉल है, जिसमें पत्थर की बनावट और उस पर उत्कीर्ण कृष्ण रासलीला दर्शनीय हैं। फूलमहल, गजमंदिर, अनूप महल, कर्ण महल, लाल निवास, सरदार निवास इत्यादि इस किले के प्रमुख वास्तु हैं.

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