राजस्थान की विधानसभा – गणपूर्ति व सत्र, कार्यकाल तथा प्रमुख शक्तियाँ

सामान्य परिचय:-

हमारे देश में शासन व्यवस्था के लिये शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया गया है जिसे प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानवेत्ता मोन्टेस्क्यु ने दिया था। यह सिद्धांत बताता है कि कानून निर्माण की शक्ति (विधायिका), उसको लागू करने की शक्ति (कार्यपालिका) तथा कानून व्यवस्था एवं न्याय-निर्णय की शक्तियां (न्यायपालिका) अलग-अलग निहित होनी चाहिए। भारत के संविधान के अनुच्छेद 168 में उल्लेखित है कि प्रत्येक राज्य हेतु एक विधानमंडल अथवा विधायिका होगी। विधायिका से तात्पर्य है जो व्यवस्था को बनाये रखने हेतु विधि निर्माण करती हो। इसे व्यवस्थापिका अथवा विधान मंडल भी कहते है। आइए राजस्थान की विधानसभा के बारे में जानते हैं।

राजस्थान की विधानसभा

राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य है, जहाँ एक सदनीय व्यवस्थापिका का प्रावधान है, जिसे ‘विधानसभा‘ कहते हैं। राज्य विधानसभा राज्य के लिये संविधान के अनुसार विधि निर्माण करती है। इसके सदस्यों अर्थात विधायकों का चुनाव राज्य के मतदाता करते हैं। वर्तमान में राजस्थान की विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 200 है।

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योग्यता-

राज्य विधानसभा का सदस्य बनने हेतु कुछ सामान्य योग्यतायें निर्धारित है जो कि निम्नलिखित हैं-

1. वह भारत का नागरिक हो।
2. वह न्यूनतम आयु 25 वर्ष पुर्ण कर चुका हो।
3. संसद द्वारा विधि से निर्धारित अन्य योग्यताएं धारण करता हो।
4. वह राज्य अथवा भारत सरकार के अधीन किसी लाभकारी पद को धारण नही करता हो।
5. वह सक्षम न्यायालय के द्वारा विकृत मानसिकता का तथा दिवालिया घोषित नहीं हो।

कार्यकाल-

विधायिका तथा इसके सदस्यों का कार्यकाल साधारणतया 5 वर्ष होता है, जो शपथ ग्रहण से माना जाता हैं। राज्य में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगा होने पर संसद द्वारा विधि पूर्वक विधान सभा का एक बार में एक वर्ष का कार्यकाल बढ़ाया भी जा सकता है। साथ ही, राज्यपाल के प्रतिवेदन पर राष्ट्रपति संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर समय से पूर्व वही विधानसभा भंग कर सकता है तथा साथ ही राष्ट्रपति शासन प्रभावी हो जाता है।

गणपूर्ति व सत्र-

राजस्थान की विधायिका या विधानसभा की गणपूर्ति सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग से होती है। गणपूर्ति के अभाव में किया गया कार्य असंवैधानिक होता है। संवैधानिक प्रवधान के अनुरूप एक वर्ष में न्यूनतम दो सत्र अवश्य हों तथा दो सत्रों के मध्य 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। राज्य सरकार वर्तमान में बजट-सत्र, शीतकालीन सत्र, मानसून-सत्र आदि प्रत्येक वर्ष में आहूत करती है।

विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष-

राज्य व्यवस्थापिका या विधान सभा अपना एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती है। विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के कार्य लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की भांति सदन का नियमपूर्वक संसालन करना, सदस्यों के विशेषाधिकारों की सुरक्षा, अनुशासन एवं शांति रखना, सदस्यों को प्रश्न पूछने, प्रस्ताव तथा विधेयक प्रस्तुती की अनुमति देना, मतदान कराने पर परिणाम की घोषणा आदि कार्य करते हैं। अध्यक्ष को सदस्यों द्वारा 14 दिन पूर्व सूचना देकर विशिष्ट बहुमत से हटाया भी जा सकता हैं। अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को दे सकता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष कार्य देखता है।

विधानसभा की प्रमुख शक्तियाँ एवं कार्य-

राज्य की विधानसभा की शक्तियाँ व कार्य भी लोकसभा की तरह है। वह संविधान की राज्य सूची व समवर्ती सूची में निर्धारित विषयों पर विधि निर्माण करती है। राज्य सूची में 66 तथा समवर्ती सूची में 47 विषय है। राज्य के लिए वित्तीय स्वीकृति का कार्य करती है अर्थात विधानसभा बजट पारित करती है। कार्यपपालिका पर नियंत्रण रखती है। आवश्यकता पड़ने पर संविधान संशोधन की स्वीकृति दे सकती है। विधानसभा सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं।

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