भारत एंव राजस्थान का इतिहास के स्त्रोतों व अध्ययन की दृष्टि से हम इतिहास को तीन भागों में बांटते हैं।
1. प्रागैतिहासिक काल
2. आद्य ऐतिहासिक काल
3. ऐतिहासिक काल
1. प्रागैतिहासिक काल – राजस्थान का इतिहास
प्रागैतिहासिक काल हम उस काल को कहते हैं जिससे संबंधित हमें कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते तथा तात्कालिक समय की जानकारी के लिए इतिहासकारों को पुरातात्विक सामग्री पर ही निर्भर रहना पडता है।
प्रागैतिहासिक काल में व्यक्ति पशुपालन, आग जलाना, समूह में रहना सीख चुका था। इसी काल में मनुष्य ने विश्व का प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार अर्थात् ‘पहिये का आविष्कार‘ कर लिया था। इस काल में सर्वाधिक सामग्री पाषाण अर्थात् पत्थर से बनी मिली, इसीलिए इस काल को ‘पाषाण काल‘ के नाम से भी जानते हैं।
प्रमुख स्थल- दर (भरतपुर), बागोर (भीलवाड़ा), तिलवाड़ा (बाड़मेर)।
नोट- राजस्थान में नदियों और सहायक नदियों के किनारे पाषाण युगीन संस्कृति प्राप्त हुई तो राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य को सर्वप्रथम (1871 ई) में प्रारम्भ करने का श्रेय ए.सी.एल. कार्लाइन को दिया जाता है।
2. आद्य ऐतिहासिक काल – राजस्थान का इतिहास
सभ्यता एवं संस्कृति का वह युग जिससे संबंधित लिखित साक्ष्य तो प्राप्त होते है, लेकिन वे अपठनीय हैं। इस सभ्यता की लिपि दाँये से बाँये, बाँये से दाँये की ओर सर्प के समान लिखी जाती थी। अतः इस लिपी को ‘सर्पिलाकार‘ एवं ‘ब्रुस्टो फेदन लिपि‘ भी कहते है। इस काल में व्यक्ति बस्तियाँ बनाकर रहने लग गये थे।
इस काल में पाषाणों के उपरान्त मानव ने धातुओं का प्रयोग प्रारम्भ किया। मानव ने जिस धातु का इस्तेमाल सबसे पहले किया, वह ताँबा था, इसी कारण इन सभ्यता को ताम्रयुगीन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। ताँबें के पश्चात् काँसे का इस्तेमाल होने लगा, काँसा को ताँबा व टिन से बनाया जाता है, इसी कारण यह सभ्यता काँस्य युगीन सभ्यता भी कहलाती है।
प्रमुख स्थल- चीथवाड़ी, किराडोत, नंदलालपुरा (जयपुर), कोल-माहोली (सवाई माधोपुर), बालाथल (उदयपुर), कुराड़ा (नागौर), ऐलाना (जालौर), मलाह (भरतपूर), झाडोल।
नोट- सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर गुप्त वंश के अवशेषों का संग्रह बीकानेर संग्रहालय में है।
3. ऐतिहासिक काल – राजस्थान का इतिहास
सभ्यता एंव संस्कृति का वह युग जिससे संबधित पूर्ण लिखित, पढनीय एवं प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध है ऐतिहासिक काल कहलाता है। भारत के संदर्भ में इसका प्रारंभ छठी शताब्दी ईसा पूर्व से माना जाता है।
इस काल में काँसे के पश्चात् लोहे का प्रयोग किया जाने लगा। अतः इन सभ्यताओं को लौहयुगीन सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख स्थल- सुनारी (झुंझुनूं), जोधपुरा (जयपुर) एवं नोह (भरतपुर, यहाँ से ताम्रयुगीन, वैदिक या उत्तरवैदिक काल में आर्य संस्कृति का केन्द्रीय स्थल गंगा-यमुना दोआब था। एवं महाभारत कालीन अवशेष मिले है।) वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना वैदिक संस्कृति की देन है।
नोट- राजस्थान का इतिहास में लौहयुगीन सभ्यताओं के साथ ही आधुनिक सभ्यताओं का प्रारम्भ माना जाता है।
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