सिंधु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता

भारतीय सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यता में से एक है खुदाई के स्थल सिंधु नदी के आसपास होने के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया लेकिन बाद में उत्खनन स्थलों का क्षेत्र विस्तार सिंधु नदी से दूर तक मिलने के कारण सर्वप्रथम खोजे गए हड़प्पा स्थल के नाम पर इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा।

हड़प्पा की प्रथम जानकारी 1826 ईस्वी में चार्ल्स मेंसन को एक टीले की खुदाई के बाद मिली उसके बाद एएसआई के अध्यक्ष कनिंघम ने 1853-56 ईसवी में इस टीले का सर्वेक्षण किया और कुछ पुरातात्विक वस्तुओं की खोज की।

1921 ईस्वी में है भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम साहनी ने पंजाब के मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर हड़प्पा का उत्खनन करवाया।

  • सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता भी कहा जाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता –

हरप्पा सभ्यता के उत्पत्ति संबंधी मत –

  1. जान मार्शल, गार्डन चाइल्ड, डी एस गार्डन के अनुसार इस सभ्यता के विकास की प्रेरणा सांस्कृतिक आधार पर मेसोपोटामिया से मिली थी मेसोपोटामिया के नगर नियोजन योजना हड़प्पा के बजाय अव्यवस्थित और योजना वहिन थी। जल निकास योजना के चिन्ह मेसोपोटामिया से प्राप्त नहीं हुए हैं।
  2. डॉ लक्ष्मण स्वरूप, TN रामचंद्रन, के. एन शास्त्री के अनुसार सिंधु सभ्यता के निर्माता आर्यों को ही माना जाता है।
  3. भूमध्यसागरीय मत :- मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान अधिकतर मानव खोपड़ीयाँ भूमध्यसागरीय प्रजाति की होने के कारण इस सभ्यता के निर्माता भूमध्यसागरीय माने गए हैं।
  4. राखलदास बनर्जी और सुनीति कुमार चटर्जी ने अपना भाषा विज्ञान ज्ञान के आधार पर कहा है की सैंधव सभ्यता के मूल निवासी द्रविड़ थे लेकिन यह मत भी संदिग्ध है क्योंकि यदि इस सभ्यता के निर्माता द्रविड़ होते तो इस सभ्यता के अवशेष द्रविड़ क्षेत्र में अवश्य मिलते। जहां से साक्ष्यों का पूर्ण अभाव दिखाई देता है।

सिंधु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण –

सेंधव सभ्यता का काल निर्धारण विवाद का विषय है इस पर विद्वानों में मतभेद है सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने इस सभ्यता की तिथि 3250 ईस्वी पूर्व से 2750 ईसवी पूर्व निर्धारण की थी अर्नेस्ट मैके ने 2800 ईसा पूर्व से 2700 ई. पू. तक फेयर सर्विस ने 2000 से 1500 ई.पू. माना था। लेकिन सैंडल स्थलों से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों के नवीनतम परीक्षण पद्धति रेडियो कार्बन – 14 से हड़प्पा का कार्यकाल 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व निर्धारण माना है।

कार्बन डेटिंग प्रणाली का विकास बिलार्ड फ्रै़क लिब्बी द्वारा 1940 ईस्वी में किया। इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थलों के नाम –

  • मोहनजोदड़ो
  • हड़प्पा
  • चन्हूदडो
  • लोथल
  • धोलावीरा
  • रोपड़
  • कालीबंगा
  • रंगपुर
  • सुत्कागेंडोर
  • कोटदीजी
  • आलमगीरपुर
  • सुरकोटदा
  • दैमाबाद
  • मांडा
  • रोजड़ी।

सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन

सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय इतिहास में प्रथम नगरीय क्रांति का प्रतीक है, क्योंकि उत्खनन में सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन एवं व्यवस्थित रूप से बसे हुए कई नगरों मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गनेडीवाला, कालीबंगा, बनावली, गनेड़ीवाला, लोथल, धोलावीरा इत्यादि के अवशेष मिले हैं। नगर नियोजन सिंधु सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक थी।

सिंधु सभ्यता का नगर नियोजन दुर्गीकरण की योजना पर आधारित था, इसके तहत नगर को दो भागों में विभाजित किया गया – 1. दुर्गीकृत पश्चिमी भाग

2.अदुर्गीकृत पूर्वी भाग ।

1.दुर्गीकृत पश्चिमी भाग – दुर्गीकृत पश्चिमी भाग में उच्च कुलीन पुरोहित तथा नगर का शासन संचालित करने वाला शासकों का निवास स्थान होता था। इसका निर्माण ऊंचे टीले पर किया जाता था।

2. अदुर्गीकृत पूर्वी दुर्ग – अदुर्गीकृत पूर्वी भाग जिसमें सामान्य जनता के आवास होते थे। लोथल व सुरकोटड़ा में ऐसा विभाजन देखने को नहीं मिलता है। वही धोलावीरा में दो के स्थान पर तीन भागों में नगरी वी विभाजन देखने को मिलता है।

हडप्पा सभ्यता का नगर नियोजन से हमें जल निकास प्रणाली, सड़कें, भवन, सामाजिक जीवन, अंतिम संस्कार तथा आर्थिक जीवन आदि का हड़प्पा वासियों की उच्च गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती है।

जल निकास प्रणाली

  • 1.सिंधु सभ्यता की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी इसी प्रणाली के कारण यह सभ्यता विश्व की अन्य सभ्यताओं से अलग और उन्नत थी।
  • 2. जल निकासी पक्की बनी हुई थी और इन्हें ईटों से ढका जाता था।
  • 3. कालीबंगा में इसका अपवाद है इसमें कच्ची ईटों का इस्तेमाल हुआ था।

सड़कें

  • 1. सिंधु सभ्यता में सड़कों का निर्माण ग्रिड पैटर्न पर किया गया था।
  • 2. सर के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
  • 3. इसमें अन्य छोटी सड़के आकर मिलती थी।
  • 4. मुख्य सड़क को राजपथ कहा जाता था।

भवन

  • 1. सिंधु सभ्यता के भवन उनकी उपयोगिता एवं व्यवहारिक दृष्टिकोण के परिचायक थे।
  • 2. भवनो के मुख्य द्वार सड़क के बजाय गलियों में खुलते थे।
  • 3. लोथल के भवनों के मुख्य द्वार मुख्य सड़को की ओर खुलने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • 4. भवन के प्रवेश द्वार के सामने ही बड़े चौक में कुआं होता था।
  • 5. मुख्य द्वार के एक तरफ स्नानागार तथा दूसरी तरफ रसोईघर होता था।
  • 6.सिंधु के उत्खनन से पता चलता है कि आवासीय भवनों के अलावा सार्वजनिक विशाल भवन भी होते थे। जिनका विशेष अवसरों पर विशेष महत्व होता था।
  • 7. विशाल स्नानागार (मोहनजोदड़ो) धार्मिक उत्सवों में काम आता था।

सिंधु सभ्यता में सामाजिक व्यवस्था का आधार परिवार होता था। उत्खनन स्थलों से बहु संख्या में प्राप्त मातृदेवी की मृण्यमूर्ति से अनुमान लगाया जा सकता है कि सेंधव समाज मातृसत्तात्मक रहा होगा। मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त अवशेषों के आधार पर समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित होने के प्रमाण मिलते हैं। जैसे –पुरोहित, योध्या, व्यापारी, शिल्पकार और श्रमिक वर्ग इन चारों वर्गों में विभाजन होने का अनुमान लगाया जा सकता है।

सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता के सामाजिक जीवन की विशेषताएं –

  • यहां के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के होते थे।
  • गेहूं, जौ, चावल व दाल यहां के लोगों के मुख्य खाद्यान्न थे।
  • यह लोग भेड़, मुर्गी, बकरी बतख और मछलियां आदि के मांस खाते थे।
  • इनके द्वारा सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र का उपयोग किया जाता था।
  • सौंदर्य सामग्री के रूप में लिपस्टिक, चूड़ी, अंगूठी व हार का प्रयोग करते थे।
  • पुरुष और स्त्रीयो दोनों को आभूषणों का शौक था।
  • सेंधव निवासी आमोद – प्रमोद के भी शौकीन थे।
  • सिंधु निवासी पासे का खेल, नृत्य, शिकार और पशुओं की लड़ाई से अपना मन बहलाते थे।
  • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिट्टी के पासे प्राप्त हुए हैं। जिनके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि वे पासे से खेलने में पारंगत थे।
  • उत्खनन से प्राप्त मछली के कांटे से पता चलता है कि वे मछली के शिकार करते थे।
  • यह लोग अपने धार्मिक उत्सव को बड़े धूमधाम से मनाते थे।

हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन –

  • सिंधु निवासियों की आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि था। सिंधु एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर कर लाई गई जलोढ़ मिट्टी कृषि कार्य के अनुकूल थी।
  • हल का सीमित प्रमाण मिलते हैं, ज्यादातर नुकीली कुदाल का ही कृषि कार्य में उपयोग होता था।
  • कृषि कार्य में ज्यादातर पाषाण कांस्य निर्मित व लकड़ी के औजारों का इस्तेमाल होता था।
  • मोहनजोदड़ो से मिट्टी के बने हल का प्रारूप तथा बनावली से मिट्टी के बने हल का पूरा प्रारूप प्राप्त हुआ है।
  • हड़प्पा से अनाज रखने की तीन कोठियां तथा कालीबंगा से एक के ऊपर एक कई जार प्राप्त हुए हैं।
  • सैंधव क्षेत्र में कृषि की सिंचाई के लिए वर्षा ही मुख्य आधार था परंतु वर्षा के अतिरिक्त जलाशय एवं कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था।
  • नहर द्वारा सिंचाई का कोई प्रमाण नहीं मिलता है ।
  • अभी तक सिंधु सभ्यता में नौ फसलों की पहचान हो पाई है, और उनमें मुख्य फसल गया गेहूं, सरसों एवं कपास रही थी।
  • गेहूं की दो किस्में ट्रिटीकम कंपैक्टम तथा स्पैरोकोकस के बारे में जानकारी मिली है।
  • रंगपुर, लोथल से धान एवं बाजरे की खेती का पता चलता है । बाजरे की किस्मो के रूप में सावा, कोदो, रागी, ज्वार आदी के में जानकारी मिली है।
  • सिंधु सभ्यता के निवासियों ने ही सर्वप्रथम कपास की खेती करना प्रारंभ किया था इसी कारण यूनानीयो इनको सिंडन कहा है।
  • कृषि में अधिशेष उत्पादन के आधार पर ही नगरों में व्यापार का विकास हुआ था।

हड़प्पा वासियों का अंतिम संस्कार –

सिंधु सभ्यता में मृतकों के अंतिम संस्कार की तीन प्रथा मिलती है।

  1. दाह संस्कार – इसमें शव को पूर्ण रूप से जलाने के बाद भस्शेमावशेष को मिट्टी के पात्र में रखकर दफना दिया जाता था। (हिंदू विधि से मिलती प्रथा) यह सर्वप्रमुख प्रथा थी।
  2. पूर्ण समाधिकरण – इसमें संपूर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था (मुस्लिम विधि से मिलती प्रथा) थी।
  3. आंशिक समाधीकरण – इसमें पशु पक्षियों के खाने के बाद बस ऐसे स्पार्गो भूमि में दफना दिया जाता था। यह प्रथा पारसी विधि से मिलती प्रथा है।

अंतिम संस्कार की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं –

  • सूरकोटदा से अंडाकार के साक्ष्य मिले थे। लेकिन हड़प्पा से ताबूत युक्त मानव समाधिकरण के प्रमाण मिले हैं। सामान्यतः मृतकों को उत्तर-दक्षिण क्रम (सिर उत्तर की ओर तथा पर दक्षिण की ओर) में दफनाया जाता था।
  • इसके अपवाद हड़प्पा व कालीबंगा में दक्षिण-उत्तर क्रम में लोथल में पूर्व-पश्चिम क्रम में रोपड़ में पश्चिम-पूर्व कर्म में मृतक को दफनाये जाने का प्रमाण मिले हैं।
  • सामान्यतः एक कब्र में एक ही व्यक्ति को दफनाया जाता था।
  • लेकिन कालीबंगा से एक और लोथल से तीन युगल समाधिकरण मिले हैं जिनमें एक कब्र में दो दो मृतक दफनाए गए हैं।
  • मृतकों के साथ अंत्येष्टि सामग्री दफनाए जाने के प्रमाण मिले हैं।
  • अंत्येष्टि सामग्री के रूप में मिट्टी के बर्तन, आभूषण, उपकरण, दीप व दर्पण आदि मिले हैं।
  • रोपड़ की कब्र से मालिक के साथ कुत्ते के दफनाए जाने के प्रमाण मिले हैं तथा लोथल कि कब्र से मृतक के साथ बकरे को दफनाया जाने के प्रमाण मिले है।

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