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Parliamentary VS Presidential Government
संसदात्मक शासन
संसदात्मक सरकार वह सरकार होती है, जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। तथा कार्यपालिका का निर्माण भी व्यवस्थापिका में ही किया जाता है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है,और कार्यपालिका व्यवस्थापिका का विश्वास बने रहने तक अपने पद पर बनी रह सकती है. इनमें सरकार के दोनों एक दूसरे से मिलकर एवं सहयोगात्मक परिवर्ती से कार्य करते हैं। राज्य अध्यक्ष अर्थात राष्ट्रपति नाममात्र का प्रधान होता है। वह शासन के किसी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। संस्थापक सरकार में वास्तविक कार्यपालिका की शक्तियां मंत्रिमंडल में निहित रहती है।(Parliamentary VS Presidential Government)
मंत्रिमंडल के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं। वे व्यवस्थापिका की बैठक में शामिल होते हैं और मतदान भी करते है। संसदात्मक शासन को मंत्रिमंडलात्मक एवं उत्तरदायी शासन भी कहा जाता है। संसदात्मक शासन व्यवस्था के प्रमुख गुण जो निम्न प्रकार से है –
- उत्तरदायी शासन।
- राजनीतिक चेतना व शिक्षा।
- व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में पारस्परिक सहयोग।
- राज्य अध्यक्ष निष्पक्ष परामर्शदाता मतदाता के रूप में।
- शासन की निरंकुशता पर रोक।
- योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों का शासन।
- लचीलापन।
- विरोधी दलों का महत्व।
संसदात्मक शासन की विशेषताएं –
- नाममात्र की व वास्तविक कार्यपालिका का अंतर।
- अनिश्चित कार्यकाल
- व्यवस्थापिका व कार्यपालिका में घनिष्ठता।
- प्रधानमंत्री का नेतृत्व।
- सामूहिक उत्तरदायित्व।
- व्यक्तिगत उत्तरदायित्व।
अध्यक्षात्मक सरकार –
अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका का प्रधान राष्ट्रपति वास्तविक शासक होता है ।वह जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होता है, तथा संविधान द्वारा उसका कार्यकाल निश्चित किया जाता है। इसमें राष्ट्रपति के कार्यो में सहायता करने के लिए एक मंत्री परिषद का गठन किया जाता है। जिसकी नियुक्ति वह स्वयं करता है, इसको सचिव का जाता है। ये राष्ट्रपति की इच्छा पर्यंत तक ही अपने पद पर बने रहते हैं तथा अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं।(Parliamentary VS Presidential Government)
अध्यक्षात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएं –
(Parliamentary VS Presidential Government)वर्तमान लोकतांत्रिक युग में सरकार का दूसरा लोकप्रिय स्वरूप अध्यक्षात्मक शासन है। इस शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग तथा स्वतंत्र रहती है। अध्यक्षात्मक शासन का आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत है। अध्यक्षात्मक सरकार की प्रमुख विशेषता है जो निम्न प्रकार से है –
- वास्तविक कार्यपालिका – अध्यक्षात्मक सरकार में एकल कार्यपालिका ही होती है। संसदात्मक शासन की तरह नाम मात्र की कार्यपालिका और वास्तविक कार्यपालिका जैसा कोई अंतर नहीं होता है। राष्ट्रपति वास्तविक शासक होता है ।वह राज्य और शासन दोनों का प्रधान होता है एवं संविधान द्वारा प्रदत्त कार्यपालिका की शक्तियों का वास्तविक प्रयोग करता है।
- शक्तियों का पृथक्करण – अध्यक्षात्मक व्यवस्था में संसदीय व्यवस्था की तरह व्यवस्थापिका और कार्यपालिका मिलकर कोई नई संस्था का निर्माण नहीं करती है। अर्थात व्यवस्थापिका से कार्यपालिका पूर्णता अलग रहती है ।कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते हैं, न तो उनके प्रति उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार अध्यक्षात्मक शासन में कार्यकारिणी व्यवस्थापिका अपनी अवधि, शक्तियों और कार्यों के संबंध में एक दूसरे से स्वतंत्र व अलग रहती है। तथा न्यायपालिका भी स्वतंत्र तथा सर्वोच्च होती है।
- अवरोध और संतुलन का सिद्धांत – इस शासन व्यवस्था में यदि शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया जाता ह, तो प्रशासन में समस्या यहां अवरोध उत्पन्न हो सकता है। क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने की स्वतंत्रता के साथ-साथ सहयोग की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिए अवरोध तथा संतुलन के सिद्धांत को अपनायक जाता है। क्योंकि एक अंग का दूसरे अंग के साथ संबंध और अंकुश बना रह सके।
- निश्चित कार्यकाल – अध्यक्षात्मक सरकार में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों को एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है। इसमें कार्यपालिका व व्यवस्थापिका दोनों का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित किया जाता है। इसमें कार्यपालिका का प्रधान राष्ट्रपति एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह अवधि 4 वर्ष की होती है। इस अवधि से पूर्व व्यवस्थापिका उसे अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके हटा नहीं सकती है। निश्चित अवधि से पूर्व केवल महाभियोग लगाकर ही राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है। लेकिन महाअभियोग लगाने और उसे पारित करने की प्रक्रिया बहुत ही कठिन है। 5.राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं है।क्योंकि इस व्यवस्था में मंत्रिपरिषद जैसी कोई चीज नहीं होती है, और राष्ट्रपति अपने सचिवों को चुनने व अपदस्थ करने हेतु पूर्ण स्वतंत्र होता है।(Parliamentary VS Presidential Government)
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का तुलनात्मक विश्लेषण
कार्यपालिका के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में वास्तविक कार्यपालिका अर्थात मंत्रिपरिषद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। व्यवस्थापिका किसी भी समय अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके कार्यपालिका को पदच्युत कर सकती है। जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का कार्यकाल संविधान द्वारा ही निश्चित किया जाता है। ऐसी स्थिति में समय से पूर्व कार्यपालिका (राष्ट्रपति) को हटाना कठिन है।
कार्यकाल के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में कार्यपालिका का रूप दोहरा होता है। इनमें दो अध्यक्ष होते हैं पहले को राज्यअध्यक्ष एवं दूसरे को संस्था अध्यक्ष का जाता है। भारत में राष्ट्रपति तथा ब्रिटेन का राजा या रानी नाम मात्र के तथा प्रधानमंत्री व मंत्री परिषद वास्तविक कार्यपालिका होते हैं। इनके विपरीत अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका इकलौती है। कार्यपालिका की शक्ति एक ही व्यक्ति (राष्ट्रपति) में निहित रहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का सर्वोत्तम उदाहरण है।(Parliamentary VS Presidential Government)
उत्तरदायित्व के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में वास्तविक कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदाई होती है। इसके विपरीत अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई नहीं होती है, और ना ही उसे अपने कार्यों के निष्पादन के लिए व्यवस्थापिका के विश्वास की आवश्यकता होती है।(Parliamentary VS Presidential Government)
परिवर्तन के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में समय अनुसार सरकार में परिवर्तन किया जा सकता है। संकट काल में यह व्यवस्था अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। अध्यक्षात्मक शासन अधिक कठोर होता है। इसमें समयानुसार परिवर्तन भी नहीं किया जा सकता।इसमें राष्ट्रपति का कार्यकाल संविधान द्वारा ही सुनिश्चित होता है।(Parliamentary VS Presidential Government)
कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के संबंधों के आधार पर तुलना –
संस्था आत्मक शासन में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ संबंध बना रहता है। मंत्रिपरिषद, व्यवस्थापिका के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदाई होती है। अध्यक्षात्मक शासन शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित होती हैं। इसमें कार्यपालिका का निर्माण स्वतंत्र रूप से किया जाता है, तथा कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का पूर्ण पृथक्करण होता है। कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते हैं। व्यवस्थापिका का कार्यपालिका पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है।(Parliamentary VS Presidential Government)
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सरकार की दलीय स्थिति के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में जिस राजनीतिक दल का व्यवस्थापिका में बहुमत होता है, उसी दल की सरकार बनती है। लेकिन कभी-कभी किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में समान विचारधारा वाले अन्य राजनीतिक दलों को इसमें शामिल कर मिले-जुले मंत्रिमंडल का गठन किया जाता है। दूसरी और अध्यक्षात्मक शासन में ऐसी स्थिति का अभाव रहता है। इसमें राष्ट्रपति किसी भी योग्य व्यक्ति को बिना दलीय आधार के सचिव के पद पर नियुक्त कर सकता है।(Parliamentary VS Presidential Government)
शासन की शक्तियों के आधार पर तुलना –
संघात्मक शासन का आधार शक्तियों का संयोजन होता है। इसमें कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका एक दूसरे के सहयोग से मिलजुल कर कार्य करती है। जबकि अध्यक्षात्मक शासन का आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत है, इसमें शासन के तीन अंग स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।(Parliamentary VS Presidential Government)
मंत्रियों की स्थिति के आधार पर तुलना –
संसदात्मक शासन में मंत्रियों की स्थिति बेहतर स्तर की होती है। वे अपने युवकों की सर्वोपरि होते हैं तथा कानून निर्माण के कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अध्यक्षात्मक शासन में मंत्री नहीं होते हैं। लेकिन सचिव होते हैं, और वे राष्ट्रपति के अधीन रहकर कार्य करते हैं।(Parliamentary VS Presidential Government)
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