जलवायु क्या हैं?
किसी स्थान की वायुमण्डलीय दशा (तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, वायुवेग व पवन) का कुछ समय (मिनट, कुछ घण्टे या चार-पाँच दिन) के सम्मिलित रूप् को ‘मौसम’ (एक दिन में कई बार मौसम बदलता है), कुछ माह के सम्मिलित रूप् को ‘ऋतु’ तथा लम्बे समय (30 वर्षों से अधिक) के सम्मिलित रूप को ‘जलवायु’ कहते हैं। अर्थात् किसी स्थान पर 30 वर्षाें से अधिक समय तक रहने वाला एकसा मौसम वहाँ की ‘जलवायु’ कहलाती है। मानसून का प्रथम अध्ययन अरबी भूगोलवेता अलमसूदी के द्वारा किया गया, इसी कारण मानसून शब्द की उत्पति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई है। मौसिम शब्द का अर्थ पवनों की दिशा का मौसम के अनुसार पलट जाना है। भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार है-
1. अक्षांश
भूमध्य रेखा से दूरी बढ़ने अर्थात् बढते हुए अक्षांश के साथ तापमान में कमी आती है क्योंकि सूर्य की किरणों के तिरछी होने से सौर्यातप की मात्रा प्रभावित होती है। कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में तथा कर्क रेखा के देक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंध में पड़ता है, तो वहीं उष्ण कटिबंध में भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण वर्ष भर ऊँचे तापमान और कम दैनिक व वार्षिक तापंतर पाए जाते है तथा शीतोष्ण कटिबंध में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक व वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पाई जाती है। अतः हम कह सकते है कि भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय व उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ उपस्थित है।
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2. मानसूनी पवनें
मानसूनी पवनें भी भारतीय भू-भाग की जलवायु की निर्धारक तत्व हैं, तो वहीं ये मानसूनी पवनें ग्रीष्मकाल में दक्षिण-पश्चिम तथा शीतकाल में उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है तथा ये मानसूनी पवनें देश में वर्षा की मात्रा, आर्द्रता एवं तापमान को प्रभावित करती है।
3. समुद्र तल से ऊँचाई
ऊँचाई के साथ तापमान घटता है, तो वहीं सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है। विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं तथा एक ही अक्षांश पर स्थित होते हुए भी ऊँचाई की भिन्नता के कारण ग्रीष्मकालीन औसत तापमान में विभिन्न स्थानों में भिन्नता पाई जाती है।
4. उच्चावच
भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा तथा वितरण को प्रभावित करता हैं। उदाहरणार्थ जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं, तो वहीं इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिण पठार पवनविमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।
5. समुद्र तट से दुरी
समुद्र का नम व सम प्रभाव पड़ता है, तो वहीं लम्बी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है तथा भारत के अंदरूनी भागों में विष्म जलवायु पाई जाती है।
6. जल और स्थल का वितरण
भारत के दक्षिण में तीन ओर हिंद महासागर व उत्तर की ओर ऊँची व अविच्छन्न हिमालय पर्वत श्रेणी है। स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है, तो वहीं इस कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते है तथा वायुदाब में भिन्नता मानसून पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती है।
7. हिमालय पर्वत
उत्तर में यह ऊँची पर्वतमालाएँ भारतीय उममहाद्वीप को उत्तरी शीत पवनों से उभेद्य सुरक्षा प्रदान करती है तथा यह मानसूनी पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनती है।
जलवायु के आधार पर भारत में चार प्रकार की ऋतुएँ पायी जाती हैं- शीत ऋतु, वर्षा ऋतु, ग्रीष्म ऋतु एवं शरद ऋतु।
यह भी ध्यान रखें-
भारतीय संस्कृति के अनुसार ऋतुओं की संख्या 6 है तथा यह ऋतु चक्र दक्षिणी भारत की अपेक्षा उत्तरी तथा मध्य भारत में अधिक प्रचलित है। जिसका कारण है कि दक्षिण की अपेक्षा उत्तर में ऋतु परिवर्तन अधिक प्रभावशाली है। वहीं ये छः ऋतु इस प्रकार हैं- बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु तथा शिशिर ऋतु।
समान दाब वाले स्थान को मिलाने वाली रेखा को समभार रेखा कहते है। मानचित्र पर समुद्रतल के समान ऊँचाई वाले स्थानों को जोड़ने के लिए खींची गई रेखाओं को समोच्च रेखाएं कहते हैं।
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